"श्रीमद भागवत गीता में भगवान् श्री कृष्ण चन्द्र जी कहते है की जो कोई भक्त प्रेमपूर्वक फूल,फल, अन्न, जल आदि अर्पण करता है, उसे मैं प्रेम पूर्वक सगुण रूप से प्रकट होकर ग्रहण करता हूँ ! भक्त की भावना हो तो भगवान एक बार नहीं बल्कि अनेको बार उपस्थित होकर भोजन (खाते) ग्रहण करते है" !
"प्रमाण स्वरुप शबरी, द्रौपदी, विदुर, सुदामा आदि है ! भगवान ने प्रेमपूर्वक इनके हाथों भोजन किया ! मीरा के विष का प्याला भगवान स्वयं पी गए" !
कुछ लोग तार्किक बुद्धि का उपयोग करते हुए कहते है की जब भगवान खाते है तो चढ़ाया हुआ प्रसाद क्यों नहीं घटता? उनका कथन सत्य भी है !
"जिस प्रकार पुष्पों पर भ्रमर (भौरें) बैठते है और पुष्प की सुगंध से तृप्त हो जाते है किन्तु पुष्प का भार (वजन) नहीं घटता, ठीक उसी तरह भगवान की सेवा में चढाया गया प्रसाद अमृत होता है ! ब्यंजन की दिव्य सुगंध और भक्त के प्रेम से ही भगवान तृप्त हो जाते है और प्रसाद भी नहीं घटता" !
!!... श्री राधे ...!!
"प्रमाण स्वरुप शबरी, द्रौपदी, विदुर, सुदामा आदि है ! भगवान ने प्रेमपूर्वक इनके हाथों भोजन किया ! मीरा के विष का प्याला भगवान स्वयं पी गए" !
कुछ लोग तार्किक बुद्धि का उपयोग करते हुए कहते है की जब भगवान खाते है तो चढ़ाया हुआ प्रसाद क्यों नहीं घटता? उनका कथन सत्य भी है !
"जिस प्रकार पुष्पों पर भ्रमर (भौरें) बैठते है और पुष्प की सुगंध से तृप्त हो जाते है किन्तु पुष्प का भार (वजन) नहीं घटता, ठीक उसी तरह भगवान की सेवा में चढाया गया प्रसाद अमृत होता है ! ब्यंजन की दिव्य सुगंध और भक्त के प्रेम से ही भगवान तृप्त हो जाते है और प्रसाद भी नहीं घटता" !
!!... श्री राधे ...!!
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