Saturday, 17 March 2018

..तो समझो साल नया है !


तो समझो.. साल नया है

जब आनंद बांटती हरियाली
गेहूं में दूध और बाली हो !
तो समझो.. साल नया है

जब गणगौर पुजती कन्याएं
गुड़ी पडवा की रस्म निभाती हो !
तो समझो.. साल नया है

मुस्कुराते आम के मोझर
भार से लदी अमरुद की डाली हो
तो समझो.. साल नया है !

उत्साह समेटे बैशाखी..
जब पोंगल गीत सुनाती हो
तो समझो.. साल नया है !

जब उपासना हो दुर्गा की
नवरात्र मनाई जाती हो !
तो समझो...साल नया है !

सजे संसार स्वागत में..
लला राम की अगुवाई हो
तो समझो.. साल नया है

- शशि प्रभा

Saturday, 17 December 2011

"Krishna is With us" But "Krishna is not For us" !

एक बात याद रखे,
"Krishna is With us"     But
"Krishna is not For us"  !

वे हमारे रथ के सारथी बनकर हमारे साथ अवश्य रहेंगे, लेकिन लड़ना तो हमें ही होगा !
वे हमारे साथ है, हमारे लिए नहीं है !
जब हम ऐसा मानने लग जायेंगे की भगवान् हमारे लिए है तो हम पुरुषार्थ से विमुख हो जायेंगे !
अकर्मण्यता से घिर जायेंगे !
हमें स्वयं युद्ध के लिए प्रस्तुत रहना है ! इस जीवन रुपी कुरुछेत्र में कृष्ण हमारे साथ अवश्य है वे जब रथ पर है तब विजय ही है !
जब तक कृष्ण हमारे ह्रदय के स्थान पर सारथी बनकर विराजमान है तब तक विजय हासिल कर लेनी है !
परिवार के सभी सदस्य आज के इस परिवार मिलन में भगवान् श्रीकृष्ण की प्रेरणा और कृपा से मिले है !

हमने आपके समछ जो विचार रखे है आशा करते है आप उस पर विचार कीजिएगा !
!!... श्री राधे ...!!

Monday, 5 December 2011

श्रीमद भागवद कथा रूपी जड़ी बूटी

हम लोग दत्तचित्त होकर जब भगवत कथा में बैठते है, श्रवण करते है तो कलि यहाँ प्रवेश नहीं कर सकता ! जैसे राजा परिक्छित ने कलि का निग्रह किया है, यह कथा कलि का निग्रह करती है १ लेकिन जब तक भगवान् की अनुग्रह न हो तब तक कथा में प्रवेश नहीं होता !
जीवन है सर्प और नेवले के बीच का युद्ध :  सुना है की जब सर्प और नेवले के बीच युद्ध होता है और जब सर्प नेवले को काट लेता है, जहर फैलने लगता है तब वह भागता है, और एक जड़ी बूटी होती है, उसको सूंघ लेता है, तो उसका ज़हर उतर जाता है ! उस जड़ी बूटी में ऐसा गुण है ! फिर आ जाता है वह सर्प के साथ युद्ध करने, उसे मोका मिलता है तो सर्प को नोचता है, इस प्रकार युद्ध करता हुआ नेवला अंततः सर्प पर विजय प्राप्त कर लेता है, ठीक उसी प्रकार संसार यह है वह सर्प है और हमारा युद्ध चल रहा है संसार सर्प के साथ ! संशय, संसार, काम और काल को सर्प कहा है -
                               " काम भुजंग डसत जब जाहीं !
                                विषय नीम कटु लागत नाहीं !!"

जब शुकदेव जी महाराज की वंदना करते है सूत जी भागवत के अंत में तो कहते है -
                             "योगिन्द्राय नमतस्मऐ शुके ब्रम्हरुपिणऐ !
                               संसारसर्पदस्तंग यो विष्णुरातममुमूचते !!"

तो जब जब यह काम, काल सर्प, संशय सर्प, संसार सर्प, हमें डसता है हममें और जीवन में ज़हर फ़ैल जाता है तब तब उस बुद्धिमान नेवले की भांति हमें भी चाहिए की हम जड़ी बूटी को सूंघ लें ताकि ज़हर उतर जाए, और उस जड़ी बूटी का नाम है "श्रीमद भागवत " !

Wednesday, 30 November 2011

...तो मृत्यु भी मधुर हो जाए !

How to Live & How to Die ?

कैसे जियें और कैसे मरें ?
कुछ लोग कहते है की ज़िन्दगी परछाई के सिवा कुछ नहीं है ! इन लोगो को अपने जीवन में निराशा, अंधकार और केवल मृत्यु के स्वप्न आते है ! दुनियादारी के बोझ तले दबे लोगो की यह प्रतिक्रिया है ! कुछ लोग कहते है की जीवन एक कला है ! ऐसे लोग प्रत्येक स्थिति में खुश रहना चाहते है ! ज़िन्दगी पतझड़ नहीं बसंत है ! ग़र जीने का सही ढंग जान गए तो अंत तक जीवन में बसंत ही रहेगी ! उसके लिए जीवन खिलते पुष्प सा होगा, पंछी की चहक सा होगा, झरने की तरह प्रसन्न होगा, संतो का जीवन ऐसा ही होता है १ देखिये सुखदेव जी भी कहते है-
कृष्ण ही कला है और कला ही कृष्ण है ! कृष्ण का सम्पूर्ण जीवन कलकल बहता झरना है ! कृष्ण के स्मरण मात्र से ह्रदय मधुरता से भर जाता है !

Saturday, 12 November 2011

******अयोध्या*******



बाबर ने मुस्लिम धर्म के प्रसार के लिए मंदिर को मस्जिद बनाने का आदेश दे दिया ! मंदिर तोड़ दिया गया ! उसी के अवशेषों से तथा हिन्दुओं के रक्त से सने हुए गारे से मस्जिद का निर्माण प्रारंभ हुआ !
जब मस्जिद की दीवार १ फुट उचाई तक पहुचते पहुचते *दैवीय शक्ति * के कारण अनेको बार गिरी, तब कज़ल  अब्बास  कलंदर ने पुजारी श्यामानंद को प्रताड़ित कर, तरह तरह की यातनायें देकर दीवार बनाए जाने की पद्दति मालूम की ! तब पुजारी श्यामानंद जी ने जो जानकारियां दी थी वो इस प्रकार है -

1 . मस्जिद के मुख्य प्रवेश द्वार के ऊपर चन्दन की सिल्ली पर लिखवाए..  *'सीता पाक है'*  !  यह चन्दन की सिल्ली वर्तमान में भी है !
2 . मस्जिद के बगल में बजू करने के लिए *कुआं* न बनाया जाए !  (दुनिया की सभी प्रमुख मस्जिदों के बगल में हों..जरुरी है )
3 . मंदिर की *परिक्रमा* प्रणाली मस्जिद में भी जारी की जाए  !
4 . मस्जिद का गुम्बद मंदिरों की तरह बनाया जाए !

उपर्युक्त राज़ जानने के बाद कज़ल अब्बास कलंदर ने पुजारी श्यामानंद महाराज की गर्दन कलम करवा दी और अनेको परिवर्तन कराने के पश्चात् मस्जिद बनवाने में सफल हो सकां !

Friday, 21 October 2011

धार्मिक आस्थाओं में अंको का अर्थ ...?

1 . एक का अर्थ है...
इश्वर एक है !
2 . दो का अर्थ है...
इश्वर और जीव के मिलने से सृष्टि बनी !
3 . तीन का अर्थ है...
तीन लोक माने गए है - स्वर्ग लोक, मृत्यु लोक, पाताल लोक !
4 . चार का अर्थ है ...
वेद- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद !
5 . पांच का अर्थ है...
तत्त्व पांच होते है- छिति, जल, पावक, गगन, समीर !
6 . छः का अर्थ है...
ऋतुए छः होती है- बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशर !
7 . सात का अर्थ है...
संगीत के सुर सात होते है - सा, रे, गा, म, प, ध, नि,  !
8 . आठ का अर्थ है...
दिन और रात मिलकर आठ पहर होते है !
9 . नौ का अर्थ है...
"नवधा भक्ति"...तात्पर्य वर्ष में आने वाली दो नवरात्रियों से भी है !
10 . दस का अर्थ है...
दिशाएँ दस होती है-पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आकाश, पाताल, नैरित्य, वायव्य और आग्नेय. इसके अलावा दिग्पाल भी दस होते है- इन्द्र, यम, कुबेर, वरुण, ब्रम्हा, विष्णु, रूद्र, अग्नि, नैर्त्य और पवन !

Tuesday, 18 October 2011

क्या जो भगवान् को चढाया जाता है, उस प्रसाद को वे खाते है ! यदि खाते है तो घटता क्यों नहीं ?

"श्रीमद भागवत गीता में भगवान् श्री कृष्ण चन्द्र जी कहते है की जो कोई भक्त प्रेमपूर्वक फूल,फल, अन्न, जल आदि अर्पण करता है, उसे मैं प्रेम पूर्वक सगुण रूप से प्रकट होकर ग्रहण करता हूँ ! भक्त की भावना हो तो भगवान एक बार नहीं बल्कि अनेको बार उपस्थित होकर भोजन (खाते) ग्रहण करते है" !
"प्रमाण स्वरुप शबरी, द्रौपदी, विदुर, सुदामा आदि है ! भगवान ने प्रेमपूर्वक इनके हाथों भोजन किया ! मीरा के विष का प्याला भगवान स्वयं पी गए" !
कुछ लोग तार्किक बुद्धि का उपयोग करते हुए कहते है की जब भगवान खाते है तो चढ़ाया हुआ प्रसाद क्यों नहीं घटता? उनका कथन सत्य भी है ! 
"जिस प्रकार पुष्पों पर भ्रमर (भौरें) बैठते है और पुष्प की सुगंध से तृप्त हो जाते है किन्तु पुष्प का भार (वजन) नहीं घटता, ठीक उसी तरह भगवान की सेवा में चढाया गया प्रसाद अमृत होता है ! ब्यंजन की दिव्य सुगंध और भक्त के प्रेम से ही भगवान तृप्त हो जाते है और प्रसाद भी नहीं घटता" !
!!... श्री राधे ...!!